समय की धारा

गम के साये में समझ पाये,

कौन अपने हैं कौन है पराये।

पिधली बर्फ,नदी हो गई,

मिल सागर से, तूफान में तबदील हो गई,

सागर के हिस्‍से सिर्फ इलजाम हैं आएं।

निगल गई,धुंआ उगलती चिमनियां,

तारे आसमान के,

कुदरत के रंग है निराले, लोग कहते हैं आए,

अपनी करनी कब समझ हैं पाये।

आतंकवाद, आतंकवाद का गाना जो हैं, गाते आज,

शब्‍द उन्‍हीं ने हैं पिरोये,

सुर भी उन्‍हीं ने हैं लगाये,

धुन हो गई मतम की, कौन, किसे, क्‍या समझए ।

बन्‍द है एक कसाब कैद में,

यूं लगता है, दिलो कैद हैं कसाब ही के साये ।

सीमा स्‍मृति

1 comments:

anamika said...

कुदरत के रंग है निराले, लोग कहते हैं आए,

अपनी करनी कब समझ हैं पाये।

kaash sab apni karni samajh pate to ye sab na hota....her koi doosre per ungli uthane main vyast hai seema ji