वो कहती हुई चली गई इस दुनिया से
कि
शब्दबद्ध किया करू मैं अपने उदगारों को प्रतिदिन
मैं
उदगारों को जीने का प्रयास करती रही
अथाह सागर से गहरी थी
मेरी उस सखी की सोच
आज
मैं उदगारों में शब्द खोजती हूँ ।
हर व्यक्ति के जीवन जीने का एक विशेष रूप है बस अपने अपने रूप के संग जीवन की मुस्कान और दर्द की बात करें
वो कहती हुई चली गई इस दुनिया से
कि
शब्दबद्ध किया करू मैं अपने उदगारों को प्रतिदिन
मैं
उदगारों को जीने का प्रयास करती रही
अथाह सागर से गहरी थी
मेरी उस सखी की सोच
आज
मैं उदगारों में शब्द खोजती हूँ ।
Posted by सीमा स्मृति at Sunday, April 24, 2011
बेइंतहा प्यार मिला जिन्दगी को
उस रंगीन कैन्वस की तरह
जो रंगहीन हुआ करता है
वक्त के बेरहम रंग के तले ।
सीमा स्मृति
Posted by सीमा स्मृति at Tuesday, April 19, 2011
स्पर्श केवल,
अंद्यकार की जबान नहीं,
यह भाषा है,
प्रत्येक जीवन की
भट्टी के अंगारो की तरह उकेरा है
हर स्पर्श से पूर्व ‘जिन्दगी’ ने ।
सीमा स्मृति
Posted by सीमा स्मृति at Tuesday, April 19, 2011
नव अंकुरित कली सी ,
Posted by सीमा स्मृति at Monday, April 18, 2011
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