याद

नव अंकुरित कली सी ,

फिंजा में मोहक खुशबु सी,
हवा में सिमटी मद मस्‍त मस्‍ती सी,
चमकीली धूप सी,
शीतल चांदनी सी,
ये तेरी याद वर्षो से
मेरे जहन में करती अटखेली
तुम सखी सहेली थी मेरी,
दुनिया की निगाहों मे,
मेरे लिए आज भी तुम जिन्‍दगी की वो तस्‍वीर हो,
जिसे सहेजा है खुदा ने
अपने बनाये सभी रंगो से ,
तुम जीवन का वो आईना हो,
जिसमे आज भी अक्‍स निखर निखर जाता है ,

सीमा स्‍मृति


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