वो कहती हुई चली गई इस दुनिया से

कि

शब्‍दबद्ध किया करू मैं अपने उदगारों को प्रतिदिन

मैं

उदगारों को जीने का प्रयास करती रही

अथाह सागर से गहरी थी

मेरी उस सखी की सोच

आज

मैं उदगारों में शब्‍द खोजती हूँ

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